आखिर अमरनाथ-केदारनाथ जैसे इलाकों में ही बादल क्यों फटते हैं।

अमरनाथ गुफा के पास अचानक बारिश ऐसी हुई कि मानों आसमान में पानी से विशाल बलून फट गया हो, लोग समझ पाते कि बादल फटा हैं, तब तक वहां लगे कैंप बह गए। 

बादल कैसे फटते हैं? दरअसल छोटे से इलाके में बहुत कम समय में बहुत ज्यादा बारिश होने को बादल फटना कहते हैं। इसे विस्तार से यूं समझिए।

साइंस के नजरिए से समझें तो बारिश इतनी तेज होती है जैसे बहुत सारे पानी से भरा एक बहुत बड़ा बलून आसमान में फट गया हो। इसलिए इसे हिंदी में बादल फटना और अंग्रेजी में cloudburst कहते हैं।

अब बादल फटने को मैथमेटिक्स को समझिए, मौसम विभाग के अनुसार जब अचानक 20 से 30 वर्ग किलोमीटर के इलाके में एक घंटे या उससे कम समय में 100mm या उससे ज्यादा बारिश हो  तो इसे बादल फटना कहते हैं।

कई बार चंद मिनटों में ये बारिश हो जाती है। यहां अचानक शब्द के भी मायने हैं। आमतौर पर बादल कब फटेगा इसका पहले से अनुमान लगाना मुश्किल होता है।

1mm बारिश होना मतलब 1 वर्ग मीटर क्षेत्र में 1 लीटर पानी बरसा। जब भी 1 मीटर लंबे व 1 मीटर चौड़े क्षेत्र में एक घंटे या कम समय में 100 लीटर या ज्यादा पानी बरसे तो समझें बादल फटा।

यदि इस कैलकुलेशन को 1 वर्ग मीटर की जगह 1 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फिट करें तो, जब भी 1 वर्ग किलोमीटर इलाके में एक घंटे से कम समय में 10 करोड़ लीटर पानी बरस जाए तो समझिए कि वहां बादल फट गया।

 बादल फटने का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। क्योंकि बादल फटने पर अचानक तेजी से बारिश होती है। बादल आमतौर पर पहाड़ी इलाकों भी फटता है। भारत में कहें तो आमतौर पर बादल हिमालय में फटते हैं।

बादल, सूरज की गर्मी के चलते समुद्र के ऊपर बने भाप के गुबार होते हैं, जो नम हवाओं के साथ बहकर धरती के ऊपर आते हैं। घने बादलों वाली ये नम हवा जब समुद्र से धरती पर आती हैं तो इसे मानसून कहते हैं। 

जैसे फ्रिज का ठंडा पानी किसी गिलास या जग में भरने पर उसकी सतह पर पानी जमा हो जाता है। ठीक ऐसे ही जब ऊपरी वातावरण में बादल ठंडे होते हैं तो बूंदों में बदलने लगते हैं। इसे ही बारिश कहा जाता है।

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