भगवान कृष्ण के जन्म में कृष्णमय हुई मथुरा नगरी। कान्हां सज-धज कर तैयार। 20 लाख से ज्यादा श्रद्धालु पहुंचे।

बांके बिहारी मंदिर के कपाट 9.30 बजे बंद कर दिए गए। बांके बिहारी में साल में सिर्फ एक बार ही मंगला आरती होती है।

द्वारकाधीश मंदिर में शहनाई की धुन पर भक्त नाचे। जैसे- जैसे नंद गोपाल के जन्म का वक्त करीब आया तो श्रद्धालुओं का उत्साह बढ़ता गया।

जयपुर में 4 लाख भक्त ने किए गोविंद देव जी के दर्शन‚ कृष्ण जन्म पर दी गई 31 तोपों की सलामी।

इस्कॉन मंदिर, नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर, चित्तौड़गढ़ के सांवलिया सेठ मंदिर, करौली के मदनमोहन मंदिर, जैसलमेर के गिरधारी और बांके बिहारी मंदिर में जन्मोत्सव की धूम।

जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण तत्व प्रतिदिन की अपेक्षा एक सहस्र गुना अधिक कार्यरत रहता है।

इस तिथि को 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' यह नाम जप और श्रीकृष्ण की अन्य उपासना भावपूर्ण करने से श्रीकृष्ण तत्व का अधिक लाभ मिलता है।

बहरहाल जयपुर के आराध्य गोविंददेवजी मंदिर में 31 हवाई तोपों (आतिशबाजी) की सलामी के साथ जन्मोत्सव मनाया गया।

कान्हा के जन्म पर मथुरा होली गेट से द्वारकाधीश मंदिर तक भव्य बारात निकाली गई। इस बारात में मथुरा के 300 लोग शामिल हुए।

इस त्योहार पर आठ बड़े शुभ योग भी बना। ऐसा पिछले 400 सालों में नहीं हुआ। इसलिए ये जन्माष्टमी पर्व बहुत खास है।

मथुरा में प्रगट भए नंदलाल
ढोल-नगाड़े और शहनाई से गूंजी जन्मभूमि, 100 गायों के दूध से किया भगवान का अभिषेक

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