जिंदा मानव भ्रूण को विदेश भेजने का प्रोसेस क्या होता है? क्या इसे लेकर हमारे देश में कोई कानून है, यदि है तो कानून क्या कहता है? आगे जानिए

दरअसल जिंदा मानव भ्रूण यानी Embryo को कैलिफोर्निया भेजने की मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है।

भ्रूण क्या होता है?

इसे एक नन्ही सी जान कहा जा सकता है, आसान भाषा में समझें तो ये एक औरत के फर्टिलाइज्ड एग से बाहर निकलकर यूट्रस की दीवार पर चिपक जाता है उसे ही भ्रूण कहा जाता है।

ये सरोगेसी का मामला है। जानिए सरोगेसी क्या है?

सरोगेसी को आम भाषा में अक्सर ‘किराए की कोख’ कहा जाता है। ये तब होता है, जब कोई कपल मेडिकल कॉम्पलिकेशन के चलते माता-पिता बनने में असमर्थ होते हैं।

ऐसे में बच्चा पैदा करने की प्रक्रिया के लिए कपल दूसरी महिला की कोख यानी गर्भाशय का सहारा लेते हैं। इसके तहत बच्चा पैदा करने का एक कानूनी समझौता या एग्रीमेंट तैयार किया जाता है। 

एग्रीमेंट सरोगेट मदर या अपनी कोख देने वाली महिला और बच्चा लेने वाले माता-पिता के बीच होता है। इस एग्रीमेंट के साथ गर्भ में बच्चा पालने से लेकर पैदा होने की प्रक्रिया को ही सरोगेसी कहा जाता है।

सरोगेसी में कितना खर्चा होता है?

भारत में सरोगेसी का खर्च करीब 10 से 25 लाख रुपए के बीच आता है।

देश के अलग-अलग शहर में इसका चार्ज अलग-अलग है।

विदेशों में इसका खर्च करीब 60 लाख रुपए तक आता है।

केवल इन्फर्टाइल और भारत देश के कपल ही सरोगेसी के जरिए बच्चे पैदा कर सकते हैं।

सरोगेसी रेगुलेशन बिल 2020 के अनुसार बने सरोगेसी कानून के तहत सरोगेसी का व्यवसायीकरण नहीं किया जा सकता। ये प्रतिबंधित है।

सरोगेसी के लिए पति की उम्र 26 से 55 साल और पत्नी की उम्र 25 से 50 साल के बीच होना अनिवार्य है।  सरोगेसी मां बनने वाली महिला पूरी तरह स्वस्थ और उसकी उम्र 25 से 35 की बीच होनी चाहिए। 

कपल के पास बच्चे के जन्म दे पाने का मेडिकल प्रमाण होना चाहिए, सरोगेसी के लिए आवेदन कराने वाले कपल का सरोगेट मदर के साथ करीबी रिश्तेदार होना भी जरूरी है। 

जो महिला सरोगेट मां बनने वाली है उसकी जीवन में एक बार शादी जरूर हुई हो। महिला की एक संतान होना अनिवार्य है। वहीं वो महिला 3 से ज्यादा बार मां न बनी हो।

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