बरसात के मौसम में आपने भी इस रेड वैलवेट माइट कीड़े को बचपन में देखा होगा। इसे अलग-अलग क्षेत्रों में कई नामों से जाना जाता है। जैसे सावन की डोकरी या लाल बिलोटी और रानी का कीड़ा इत्यादि।

यह हर मौसम दिखाई नहीं देता, लेकिन मॉनसून में ये बड़ी संख्या में नजर आते थे। इसलिए इसे सावन की डोकरी कहा जाता है।

मानसून की बारिश में ये रेड वैलवेट बग या बरसाती कीड़ा वैसे तो नदियों के आसपास की मिट्टी में दिखता है‚ लेकिन जहां बारिश अधिक और मिट्टी बेहद उपजाउ होती है ये खासकर वहीं नजर आते हैं।

यह बेहद मखमली, सुर्ख लाल और छोटा होता है, इसे छूने या उठाने पर ये अपने पंजे सिकोड़ लेता है लेकिन फिर कुछ सेकंड के बाद पंजे खोलकर धीरे-धीरे चलता है।

ओवरसीज, में यह ट्रंबिडियम के नाम से बेचा जाता है, कई बार तो इसकी कीमत दस गुना अधिक लगाई जाती है। विभिन्न प्रकार की दवाओं में इस कीड़े का इस्तेमाल किया जाता है।

प्राचीन ग्रंथों में इसका सम्मानजनक स्थान है, विशेषकर यूनानी चिकित्सा में, इसे गर्म माना जाता है, इसके तेल को पक्षाघात में मालिश के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

एक आंतरिक औषधि के रूप में, इस कीड़े का इस्तेमाल ताकत की दवा के लिए भी अधिक किया जाता है।

पारंपरिक चिकित्सक 40 से अधिक प्रकार की बीमारियों में इसका उपयोग करते हैं, जिसमें मधुमेह भी शामिल है। 

मध्य भारत में इसे आम भाषा में रेन कीट या रेन बग भी कहा जाता है। लेकिन बदलते मौसम में ये सुंदर जीव अब विलुप्त हो रहा है। ऐसा ही रहा तो ये जीव तस्वीरों में ही सिमट कर रह जाएगा। 

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