सुपरमून क्या है‚ दरअसल सुपरमून एक खगोलीय घटना है, जिसमें चांद अपने नॉर्मल स्थिति से ज्यादा बड़ा नजर आता है। सुपरमून सामान्य चांद की तुलना में 7% ज्यादा बड़ा 15% ज्यादा चमकीला दिखाई देता है।

चंद्रमा हर 27 दिन में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है। पूर्णिमा भी 29.5 दिन में एक बार आती है। हर पूर्णिमा में सुपरमून नहीं होता, लेकिन हर सुपरमून पूर्णिमा को ही होता है।

चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर एक अण्डे के आकार में चक्कर लगाता है, इसलिए पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी हर दिन बदलती ही रहती है।

जब चंद्रमा पृथ्वी से सबसे दूर होता है, तो उसे एपोजी (Apogee) कहा जाता है और जब वह निकटतम होता है तो उसे पेरिजी (Perigee) कहा जाता है।

नासा के अनुसार सुपरमून तब होता है जब चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी के सबसे करीब होती है और पूर्णिमा होती है।

नासा के अनुसार, 1979 में ज्योतिषी रिचर्ड नोल ने पहली बार सुपरमून शब्द का इस्तेमाल किया था। एक सामान्य वर्ष में दो से चार सुपरमून हो सकते हैं।

 जुलाई में दिखाई देने वाले सुपरमून को बक मून भी कहा जाता है। हिंदी में बक को वयस्क नर हिरण कहा जाता है। ये साल का वो समय होता है, जब हिरणों के नए सींग उगते हैं।

दुनिया की अन्य जगहों में जुलाई के सुपरमून को थंडर मून भी कहते  हैं, क्योंकि ये मानसून का दौर होता है और इस मौसम में बादल गरजना और बिजली कड़कना नॉर्मल होता है। 

सबसे अधिक तरंग दैर्ध्य यानी वेवलेंग्थ वाला लाल रंग ही प्रभावी होता है। इससे चंद्रमा पर लाल चमक आ जाती है। जिसके कारण इसे ब्लड मून भी कहा जाता है।

हम सुपरमून की 2 कंडिशन मान सकते हैं, पहला चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है और दूसरा ये कि उस दिन भी पूर्णिमा होती है।

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